छुरिया/ सीमावर्ती के कोरची के समीपस्थ ग्राम जांभड़ी में गत 10,11,12 फरवरी को तीन दिवसीय भूमकाल दिवस व कोयापुनेम सम्मेलन सफलता पूर्वक सम्पन्न हुआ।
प्रथम दिवस में मुमिया, माजी,मोकाशी, अकरा, लइंग- लयोर एकत्रीकरण, भुमिया के हाथों दंतासिरो पेन का स्थापना कर ज्योति जलाई गयी, संध्या काल में लइंग-लयोर के बीच में कार्यक्रम के सफलता हेतु चर्चा हुआ।
द्वितीय दिवस पेन दर्शन के बाद मनमोहक मांदर नृत्य के साथ भव्य रैली का आयोजन हुआ।
कार्यक्रम के उदघाटक सुनिल मंडावी एवं तुलाराम पोरेटी सहउदघाटक फूलसिंह मंडावी, दौलत मंडावी, रामू होड़ी अध्यक्ष तहसील गोंड़ समाज कोरची के अध्यक्ष रामसू काटेंगे उपाध्यक्ष प्रतिमाताई काटेंगे प्रमुख मार्गदर्शक गोंड़ महासभा मोहला के अध्यक्ष नरेन्द्र नेताम, ब्लाक गोंड़ समाज छुरिया-डोंगरगढ़ के अध्यक्ष एवं कवि दिनेश कोरेटी दिलेर,ब्लाक गोंड़ समाज ईस्तारी के अध्यक्ष बाबूराव हिड़को,गढ़चिरौली के प्राध्यापक नरेश मंडावी, पत्रु नरोटे, अधिवक्ता उमेश मंडावी, गणेश फुलकुंवर, रमेश कोरचा, नंदकिशोर नेताम, सियाराम हलामी, संजय तारम,राजेन्द्र दिहारे जागेश्वर उसेण्डी, शामलाल नरोटे, श्रीराम कल्लो, अनिल केरामी, दिलीप मंडावी, रामू होड़ी एवं फूलसिंग मंडावी रहे।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गणेश फुलकुंवर ने कहा कि हम कितने भी बड़े अधिकारी क्यों न बन जांये हमें अपने संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए।अपनी संस्कृति को मूल स्वरूप में बचाये रखने के साथ- साथ शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ना होगा।
गोंड़ महासभा मोहला के अध्यक्ष नरेन्द्र नेताम ने कहा कि हमारा गोंड़ महासभा मोहला एक बड़ी गोंड़ महासभा है एक रीति-नीति -संस्कृति एवं रोटी-बेटी के लेन-देन को मानने वाले सभी गोंड़ों को हम अपने गोंड़ महासभा मोहला से जोड़ने का सार्थक प्रयास कर रहें है। आधुनिक लोग प्राचीन संस्कृति को खत्म करने का प्रयास कर रहे है जोकि समाजिक दृष्टिकोण से बहुत खतरनाक है।
ब्लाक गोंड़ समाज छुरिया-डोंगरगढ़ के अध्यक्ष,कवि एवं प्रखर वक्ता दिनेश कोरेटी दिलेर ने कहा कि गोंड़ समाज आज भी हर क्षेत्र में पिछड़ा हुआ है इसके पीछे मुख्य कारण विकास परक सोच का अभाव है। आदिवासी समाज को अपनी मूलसंस्कृति को बचाये रखना होगा। प्राचीन एवं गौरवशाली संस्कृति ही हमारे गोंड़ समाज की मूल पहचान है जिसे कभी भी मिटने नहीं देना है। जिस दिन गोंड़ी संस्कृति मिट जायेगी उस दिन गोंड़ों का पहचान भी मिट जायेगा।हम चाहते है कि हम मर मिट जायें लेकिन हमारी संस्कृति एवं हमारा पहचान मूल रूप में कायम रहें। संस्कृति को बचाने के साथ-साथ जल,जंगल एवं जमीन को भी बचाना हमारा परम कर्तव्य है। हमें शिक्षा, व्यापार, आधुनिक कृषि के क्षेत्र में भी आगे बढ़ने की आवश्यकता है। श्री कोरेटी ने अपनी स्वरचित मौलिक क्रांतिकारी गीत प्रस्तुत कर लोगों को भावविभोर कर दिया तथा खूब तालियाँ बटोरी।
ईस्तारी ब्लाक गोंड़ समाज अध्यक्ष बाबूराव हिड़को ने कहा कि हमें सामाजिक एवं सांस्कृतिक रूप से एकजुट होने की जरूरत है हमारे संस्कृति में बाहरी संस्कृति का प्रभाव बढ़ रहा है जोकि चिन्ता का विषय है। गोंड़ी संस्कृति में बाहरी संस्कृति का प्रभाव पड़ने से मूल गोंड़ी संस्कृति में विकृति देखने को मिल रही है ।हमें अपने गोंड़ी संस्कृति को विकृति से बचाना है।
प्राध्यापक नरेश मंडावी ने भूमकाल दिवस पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहा कि बस्तर के क्रांतिकारी वीर गुंडाधुर धुरवा के अंग्रेजों के द्वारा की जा रही अन्याय- अत्याचार व सांस्कृतिक अतिक्रमण के खिलाफ संघर्ष के लिए एकजुट होने के 10 फरवरी को एकजुट होने का संदेश भूमकाल विद्रोह है आज हमें फिर से भूमकाल जैसे आंदोलन चलाने की आवश्यकता है।
सभा को प्राध्यापक पत्रु नरोटे, अधिवक्ता उमेश मंडावी, प्राध्यापक रमेश कोरचा, नंदकिशोर नेताम, रामसू काटेंगे ने भी संबोधित कर गोंड़ समाज के लोगों से मूल गोंड़ी संस्कृति ,गोंड़ी भाषा, रीति- रिवाज को बचाये रखने का आव्हान किया।
इस अवसर पर कोरची तहसील के गोंड़ समाज संगठन 11 ग्राम जांभड़ी, भुयालदंड, दोढ़के,आस्वालहुडकी, जामनारा, बोडेणा, साल्हे पकनाभट्ठी, खुणारा, सोनपुर एवं सुरवाही के गायता, मुक्कासी, माझी, भुमिया, अकरा, लइंग-लयोर सहित गोंड़ सामाजिक कार्यकर्ता बड़ी संख्या में उपस्थित थे। अंतिम दिवस को रूढ़ी-प्रथा-परम्परा, चालीरिति व संस्कृति पर समीक्षा बैठक सम्पन्न हुई।

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