राजनांदगांव : देश की आजादी के संघर्ष की प्रथम क्रांति 1857 की अमर शहीद वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई जी की परम मंगल जयंती के महत्तम अवसर परिप्रेक्ष्य में नगर के वरिष्ठ चिंतक डॉ. कृष्ण कुमार द्विवेदी ने आह्वान चिंतन टीप में बताया कि 19 जनवरी 1828 में बनारस के मराठा परिवार मोरपंत एवं भागीरथी देवी के यहां जन्मी मनु (बाल्य नाम मणिकर्णिका) प्रारंभ से ही अपने पिता के साथ झाँसी राज्य के पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में जाती रही। सुंदर-सुशील चंचल मनु को प्यार से लोग छबीली कहते थे। सन 1842 में मनु का विवाह झाँसी राजा गंगाधर राव के साथ हुआ और वे रानी लक्ष्मीबाई कहलाने लगी। आगे 1851 में उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई किंतु पुत्र असमय ही चार वर्ष की आयु में चल बसा। बाद में राजपरिवार के सलाह के बाद सन 1853 नवंबर में पुत्र को गोद लिया लेकिन उसके तत्काल बाद ही राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई। तत्समय के बर्तानी राज में अपनी हड़प नीति से झाँसी पर कब्जा किया और खजाना भी जप्त कर लिया पर रानी लक्ष्मीबाई ने हिम्मत नहीं हारी, प्रारंभ से ही अस्त्र-शस्त्र कला में निपुर्ण रानी लक्ष्मीबाई ने पड़ोसी राज्य ओरछा एवं दतिया से युद्ध कर उन पर कब्जा किया। आगे डॉ. द्विवेदी ने विशेष रूप से स्पष्ट किया कि एक दिन अचानक बर्तानी सेना ने संपूर्ण झाँसी शहर को घेर लिया। तब महान वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई ने दो हफ्ते तक कठोर संघर्ष करते हुए अपने दत्तक पुत्र दामोदरराव को बचाकर काल्पी पहुँच गईऔर तात्याटोपे के साथ मिलकर नई सेना खड़ी और अंग्रेजों से लगातार संघर्ष कर लड़ती रही। अंत में 18 जून 1958 को रानी लक्ष्मी बाई शहीद हो गई। रानी का कठोर संघर्ष उनकी अद्भूत वीरता और साहस से न केवल युवा-पीढ़ी विशेषकर नारी वर्ग को मातृभूमि के रक्षा के लिए अभिप्रेरित किया। बल्कि असंख्य भारतमाता के सपूतों को अंग्रेजों के राज्य को उखाडऩे के लिए संकल्पित कराया। धन्य थी रानी की वीरता और साहस। आज भी कोटि-कोटि जन उनके साहस एवं संघर्ष को प्रणाम करते है।
त्वरित ख़बरें - सत्यभामा दुर्गा रिपोर्टिंग

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