स्थानीय जैन बगीचे में रविवार से पांच दिवसीय दीक्षा महोत्सव का कार्यक्रम शुरू हुआ। डोरा बंधन और केसर छांटने का कार्यक्रम हुआ। इसके बाद मुमुक्षु डाकलिया परिवार केसर के रंग में रंग गया। 24 जनवरी सोमवार की सुबह से रक्षा बंधन और हल्दी का कार्यक्रम रखा गया है।
इस दौरान मुनि सम्यक रतन सागर ने कहा कि बिना नियम के जीवन नहीं होता। हर किसी को नियम के साथ ही जीना पड़ता है। मुनिश्री ने कहा कि खेल, क्रिकेट का हो या टेबल टेनिस का या फिर फुटबॉल का नियम से ही खेलना होता है। बिना नियम के कुछ नहीं होता। बिना नियम के कोई संस्था भी नहीं होती। हर किसी को नियम के साथ ही जीना पड़ता है। नियम एक सुरक्षा है। नियम हमें हमारे मंजिल तक पहुंचाती है। आत्मा को नियम से नियंत्रित करें। नियम की शक्ति और ताकत को पहचाने। मन हमेशा नियम का विरोधी रहा है और विरोधी है। उन्होंने कहा कि जो आत्मा मन के नियंत्रण में रहती है, वह आत्म विकास नहीं कर सकती। इस अवसर पर साध्वी जिन वर्षा ने कहा कि पुण्य का अथाह अर्जन हुआ, तब हमें यह मनुष्य जीवन मिला है।
जीवन रूपी गाड़ी में ब्रेक न हो तो पतन की ओर जाएंगे
साध्वी जिन वर्षा ने कहा कि घर में यदि दीवार न हो और जीवन की लगाम यदि हाथ में न हो, तो यह जीवन कैसे चलेगा। जब तक जीवन रूपी गाड़ी में ब्रेक न हो तो पता नहीं कब हम पतन की गर्त में गिर जाएंगे। जीवन मिला है और परमात्मा हम से कह रहे हैं कि इसे संभाल कर रखें।
जीवन की डोर योग्य गुरु के हाथ में होनी चाहिए
मुनिश्री ने कहा कि संयम जीवन बंधन से मुक्ति और मुक्ति से अनुबंध के लिए है। पतंग कितनी भी सुंदर क्यों ना हो लेकिन जब तक डोर का बंधन नहीं होगा, तब तक वह ऊंची उड़ान नहीं उड़ सकती। उड़ती पतंग की डोर की कमान यदि गुरु के हाथ से मुक्त हो जाए तो उसका अधोपतन हो जाता है, वह नीचे गिर जाती है। पतंग की डोर योग्य व्यक्ति के हाथ में होनी चाहिए और जीवन की डोर योग्य गुरु के हाथ में, तभी वह सही दिशा में उड़ान भर सकता है।
जहां संयम, वहां इच्छा कभी नहीं होती: साध्वी स्नेह यशा
साध्वी स्नेह यशा श्रीजी ने कहा कि राजनांदगांव में कई आत्माएं वैराग्य की ओर बढ़ी। आज छह जीव वैराग्य की ओर बढ़ रहे हैं। इनमें एक और दीक्षा जुड़ गई है। उन्होंने कहा कि इन जीवों ने काफी पुण्य किया होगा जो इस जन्म में एक साथ यहां इकट्ठे हुए हैं। साध्वी जी ने कहा कि स्वभाव हमारा वंडरफुल होना चाहिए और समाधि ब्यूटीफुल होनी चाहिए। मन गुरु को अर्पण कर दो, जहां संयम है वहां इच्छा कभी नहीं होती।

                                           
                    
                    
           
           
           
           
                    
                    
                    
                    
                    
                    
                    
                            
                            
                            
                            
                            
                            
                            
                            
                            
                            
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