संस्कारधानी राजनांदगांव में छत्तीसगढ़ पंचगव्य डॉक्टर असोसिएशन द्वारा गौरव पथ बसंतपुर स्थित पद्मश्री गोविंदराम निर्मलकर ऑडिटोरियम में छत्तीसगढ़ राज्य स्तरीय प्रथम पंचगव्य चिकित्सक सम्मेलन का आयोजन किया गया। सम्मेलन में मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता के रूप में पंचगव्य विद्यापीठ्म कांचीपुरम तमिलनाडु के गुरूकुलपति डॉ. निरंजन वर्मा उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता महापौर श्रीमती हेमा देशमुख ने की। कार्यक्रम का शुभारंभ भारत माता, गौमाता एवं अमर बलिदानी राजीव भाई दीक्षित जी के श्रीचित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्जवलित कर किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व मुख्य वक्ता गुरूकुलपति डॉ. निरंजन वर्मा ने अपने व्याख्यान के माध्यम से देशी गोवंश से प्राप्त होने वाले पंचगव्य गोवर,गोमूत्र, दूध, दही, घृत की की विशेषताओं को विस्तार से वर्णन किया। उन्होंनें बताया कि 1947 में भारत में गोवंश की संख्या और भारत की कुल जनसंख्या लगभग एक समान थी, तब भारत का एक रूपया अमेरिका के एक डॉलर के बराबर था। धीरे-धीरे भारत में गोवंश की हत्या बढ़ती गई और आज की स्थिति किसी से छिपी नहीं हेै। आज देश में मात्र 2 करोड़ विशुद्ध देशी गोवंश ही शेष है। अमेरिकी डॉलर आसमान छू रहा है। गोवंश की अवहेलना से भारत आज गरीब देश हो गया है। डॉ. निरंजन वर्मा नें विभिन्न तर्कों एवं उदाहरण द्वारा बताया कि भारत की समृद्धि गोवंश से ही जुड़ी हुई है। गोहत्या बंद कर गोवंश को अर्थव्यवस्था से जोड़ा जाए तो चंद वर्षों में ही भारत अपनी समृद्धि पुन: प्राप्त कर सकता है। उन्होंने बताया कि भारतीय दर्शन गोवंश को पशु नहीं मानता है। अपनी अलौकिक विशेषताओं के कारण गोवंश को माता की संज्ञा दी गई है। आयुर्वेद में पंचगव्य को महाऔषधी की संज्ञा दी गई है। आरोग्य के देवता श्री धनवंतरी का निवास गोमूत्र में बताया गया है। डॉ. वर्मा ने बताया कि पंचगव्य से गंभीर व असाध्य रोगों की चिकित्सा संभव है। कोरोना जैसी बीमारी का भी आसानी से ईलाज पंचगव्य से किया जा सकता है। इस अवसर पर डॉ. निरंजन वर्मा ने उपस्थित नागरिकों का प्रश्रों का उत्तर दिया। उन्होंने दैनिक जीवन में गोवर के विभिन्न उपयोगिता के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि यदि गाय कम दूध देती हो तो दूध से छाछ बनाकर पिएं। दूध बच्चों के लिए है और बड़ों के लिए छाछ सर्वोत्तम है।
महापौर श्रीमती हेमा देशमुख ने अपने संबोधन में गोवंश की पारंपरिक उपयोगिता पर प्रकाश डाला। उन्होनें कहा कि पहले हम दांत साफ करने के लिए पेस्ट की जगह गोवर के कोयले का उपयोग करते थे। नहाने व बाल धोने के लिए दूध-दही आदि का उपयोग किया जाता था। आज यह परम्परा लुप्त होती जा रही है। उन्होंने विभिन्न गौशालाओं द्वारा निर्मित गौ आधारित दैनिक उपयोगी उत्पादों का उपयोग करने नागरिकों को प्रेरित किया। कार्यक्रम में गव्यसिद्धों (पंचगव्य चिकित्सक) द्वारा नि:शुल्क पंचगव्य चिकित्सा परामर्श शिविर का आयोजन किया गया। कार्यक्रम स्थल पर स्वदेशी, जैविक उत्पाद एवं विभिन्न गौशालाओं द्वारा निर्मित उत्पादों के स्टॉल भी लगाए गए थे। व्याख्यान के पश्चात सभी श्रोताओं में लिए जैविक भोजन की व्यवस्था की गई थी। कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ पंचगव्य डॉक्टर असोसिएशन के अध्यक्ष अवधेश कुमार, सचिव कमलेश धीवर, कोषाध्यक्ष कामेश्वर प्रसाद, संयोजक मुकेश स्वर्णकार एवं मां पंचगव्य चिकित्सा एवं गौरक्षा अनुसंधान केन्द्र से आर्य प्रमोद व डिलेश्वर साहू, आयोजन समिति के राधेश्याम गुप्ता, देवेन्द्र साहू, राकेश सोनी, सालिकराम साहू, प्रज्ञानंद मौर्य, प्रभात बैस, संजय साहू, धर्मेन्द्र साहू, पुरूषोत्तम देवांगन सहित अन्य सदस्य उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन प्रभात बैस द्वारा किया गया। सम्मेलन में देश व राज्य के विभिन्न जिलों से गव्यसिद्ध व जिले से बड़ी संख्या में लोग आए।

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