बिना केमिकल और रसायनिक खाद के किया जा रहा है उत्पादन…
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24 जून 2022

रायपुर। छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले की पहचान अपने विशिष्ट आदिवासी संस्कृति, प्राकृतिक पठारों एवं नदियों की सुंदरता के कारण है. इसमें बीते साढ़े तीन वर्षों से चाय की खेती से एक नया आयाम जुड़ गया है. असम और दार्जिलिंग की ही तरह भौगोलिक संरचना को अपने में समेटे जशपुर में चाय के पहले प्रोसेसिंग यूनिट में उत्पादन भी शुरू हो गया है.

पठारी क्षेत्र होने एवं लैटेराइट मिट्टी का प्रभाव होने की वजह से जशपुर में चाय की खेती के लिए अनुकूल वातावरण है. इसे देखते हुए जशपुर में चाय की खेती के लिए यहां चाय बागान की स्थापना की गई है. खास बात ये है कि देश के अन्य हिस्सों में चाय की खेती के लिए कीटनाशक और रासायनिक खाद का इस्तेमाल होता है, लेकिन गोधन न्याय योजना की वजह से जशपुर के चाय बागानों में वर्मी कंपोस्ट खाद का इस्तेमाल किया जाता है, जो चाय के स्वाद को बढ़ाता ही है साथ ही सेहत का भी ख्याल रखता है.

चाय प्रसंस्करण केंद्र की स्थापना

छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने जशपुर जिले के बालाछापर में 45 लाख रुपए की लागत से चाय प्रसंस्करण केंद्र स्थापित किया है. यहां पर उत्पादन कार्य भी प्रारंभ कर दिया गया है और इस प्रसंस्करण केंद्र से सामान्य चाय एवं ग्रीन टी तैयार किया जा रहा है. बालाछापर में वनविभाग के पर्यावरण रोपणी परिसर में चाय प्रसंस्करण यूनिट की स्थापना की गई है. इस यूनिट में चाय के हरे पत्ते के प्रोसेसिंग की क्षमता 300 किलोग्राम प्रतिदिन की है.

पर्यटन केंद्र बन गया चाय बागान

जशपुर जिला मुख्यालय से तीन किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ी और जंगल के बीच स्थित सारूडीह चाय बागान एक पर्यटन स्थल के रूप में भी लोकप्रिय होता जा रहा है. यहां रोजाना बड़ी संख्या में लोग चाय बागान देखने पहुंचते है. 18 एकड़ का यह बागान वन विभाग के मार्गदर्शन में महिला समूह द्वारा संचालित किया जा रहा है. सारूडीह के सात ही सोगड़ा आश्रम में भी चाय की खेती के कारण जशपुर जिले को एक नई पहचान और पर्यटकों को घूमने का एक नया स्थान मिला है.

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