शख्सियत का ताल्लुक रूप से कतई नहीं है : इनकी तुलना करना नकारात्मक छवि की भावनाएं पैदा कर सकता है
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डॉ. पल्लवी  5 मई 2022

  • व्यक्तित्व के निखार या गढ़न में रूप ज़रा भी मददगार नहीं होता, यह शाश्वत सत्य है। इसीलिए ऊंचाइयों की ओर उड़ान भरने के लिए सुंदर नहीं ताक़तवर पंखों की ज़रूरत होती है।
  • तो फिर क्यों हम में कई लोग नेगेटिव बॉडी इमेज में फंसे रहते हैं? यह कमज़ोरी बनकर हर तरह के विकास में बाधा डालती है। जैसे हैं वैसे ही ख़ुद को स्वीकार कर कैसे स्व-निखार कर सकते हैं, आमुख इसी विषय पर आधारित है।

सारे इंसान अलग दिखते हैं, अलग होते हैं और यह विविधता उनकी पहचान है। कितने ही लोग अपनी पहचान पर नाज़ करते हैं, कितनों को इसी से शिक़ायत होती है। यह सब तुलनात्मक है। क्यों कोई किसी के रूबरू अपनी पहचान को कमतर आंकता है? दूसरे आपके बारे में केवल देखकर निर्णय लें और आप इससे प्रभावित हों, यह आत्मविश्वास का मामला है। कद-काठी, रंग-रूप कुदरती हैं, इनको इसी तरह स्वीकार करके, ऐसे अनावश्यक अवरोधों को हटाया जा सकता है।

हम इंसान जो हासिल है, उससे ख़ुश नहीं हो पाते - सांवलों को गोरी त्वचा, तो गोरों को गहरे रंग की स्वस्थ चमकदार त्वचा चाहिए। किसी को बालों से ऐतराज़ है कि मेरे बाल उसकी तरह सीधे क्यों नहीं हैं या काश उसकी तरह मेरा क़द भी ऊंचा होता तो शायद मैं भी अच्छी लग सकती थी।

दूसरों के रूप-रंग से हम ख़ुद की इतनी तुलना कर बैठते हैं कि हमें ख़ुद में अनगिनत कमियां नज़र आने लगती हैं। ऐसी भावना नेगेटिव बॉडी इमेज यानी कि शरीर के प्रति नकारात्मक छवि कहलाती है।

रंग, शरीर की बनावट, क़द, चेहरे पर धब्बे, बाल, मुस्कराहट आदि अगर आकर्षक या सही न हो तो ये नकारात्मक छवि की भावनाएं पैदा करते हैं। और ये भावनाएं सिर्फ़ महिलाओं में ही नहीं बल्कि पुरुषों, युवाओं और बच्चों में भी होती हैं।

किंतु ये सोच विकसित कैसे होती है?

अपने शरीर के प्रति नकारात्मक छवि फौरन किसी को देखकर नहीं बनती। यह एक लंबे वक़्त में विकसित होती रहती है, जिसके पीछे कई कारण हैं।

पहला इसकी बुनियाद बचपन में ही पड़ जाती है। बचपन से परिवार में रूप को लेकर जिस तरह का व्यवहार या टिप्पणी की जाती है, व्यक्ति पर उसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। और वह वैसी ही छवि अपने मन में बना लेता है।

दूसरा कारण बचपन से लेकर युवा होने तक दूसरों के द्वारा छवि बना दी जाती है। आसपास के लोगों की टिप्पणी प्रभाव डालती है। मिसाल के तौर पर यदि किसी का रंग गहरा है तो उस रंग से पुकारना या मोटापे के आधार पर नाम रखना या घुंघराले बालों पर मज़ाक बनाना आदि।

तीसरा कारण ऐसे लोगों या गुटों में शामिल रहना जहां छरहरी काया को ही महत्व दिया जाता हो। इस वजह से व्यक्ति ख़ुद को उसी रूप में बदलने की कोशिश में लग जाता है।

असर नकारात्मक पड़ता है

जब ये भावनाएं मन और मस्तिष्क पर हावी होने लगती हैं तो इसका असर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ने लगता है। जीवनशैली प्रभावित होने लगती है, खान-पान की आदत में बदलाव आने लगता है और व्यवहार में गु़स्सा, ईर्ष्या व चिड़चिड़ापन भी नज़र आता है। आत्मविश्वास में कमी तो ख़ैर होती ही है, लिहाज़ा कार्यक्षमता प्रभावित होती है। आत्मनिर्भरता पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगता है। भीतर से असुरक्षा की भावना आती है। निराशा-हताशा में डूबा इंसान कई बार डिप्रेशन में भी चला जाता है।

कुछ लोग हीन भावना के कारण लोगों से मिलना छोड़ देते हैं, कमी को लेकर परेशान रहते हैं, बार-बार शीशे में ख़ुद को देखते हैं, शरीर को लेकर शर्मिंदगी और घबराहट महसूस करते हैं। तुलना और देखा-देखी में कमी दूर करने के लिए नए-नए तरीक़े आज़माते हैं, जो कई बार नुकसानदेह भी साबित होते हैं।

इस स्थिति से ख़ुद को बाहर निकालना ज़रूरी है।

इसमें काउंसलिंग मदद कर सकती है

अपने शरीर के प्रति नकारात्मक भावना को सकारात्मक करने में काउंसिलिंग मदद कर सकती है। इसमें शरीर के जिन हिस्सों को लेकर व्यक्ति को शर्मिंदगी होती है, उनकी एक सूची तैयार की जाती है। व्यक्ति को अपने बारे में क्या पसंद नहीं है, इसकी भी जानकारी ली जाती है। फिर इन सारी जानकारियों के आधार पर सीबीटी (कॉग्निटिव बिहेवियरल थैरेपी) के माध्यम से इलाज किया जाता है।

सीबीटी एक प्रकार की टॉक थैरेपी है। इसमें मनोवैज्ञानिक पीड़ित व्यक्ति की नकारात्मक सोच को बदलने में मदद करता है। इसमें कई तरह के अभ्यास सोच और विचार बदलने में मदद करते हैं...

  • वीडियो के माध्यम से नकारात्मक सोच से उबरने के तरीक़े समझाए जाते हैं। हाव-भाव की भाषा को बेहतर करके और ग्रूमिंग कोर्सेज़ के माध्यम से भी बदलाव लाया जाता है।
  • इसमें इंडीविजुअल थैरेपी कहीं ज़्यादा कारगर है क्योंकि नेगेटिव बॉडी इमेज हर व्यक्ति में अलग-अलग बातों को लेकर होती है। यही वजह है कि कोई एक सामान्य नियम सबके ऊपर लागू नहीं किया जा सकता।
  • जिन्हें कमी समझते हैं, थैरेपी के माध्यम से उस कमी को सकारात्मक रूप से अपनाने में मदद की जाती है।
  • यदि आत्मविश्वास की कमी है, तो उसे सुधारने में मनोवैज्ञानिक मदद करते हैं।
  • व्यक्ति का वज़न बढ़ा हुआ है और वह ख़ुद में बदलाव लाना चाहता है तो उसे नियंत्रित करने में भी मदद करते हैं।

पहला क़दम आपका ख़ुद का अहसास है ...

काउंसलिंग यानी मार्गदर्शन के लिए जाने से पहले आपको यह अहसास होना चाहिए कि आपको मदद मिल सकती है और मन:स्थिति बेहतर हो सकती है। काउंसलर केवल तब मदद कर सकते हैं, जब आप ख़ुद मदद लेने के लिए तत्पर हों।

  • ख़ुद की छवि की तुलना दूसरों से करने से पहले यह भी जान लें कि सूरत से कहीं ज़्यादा सीरत मायने रखती है। अच्छा व्यवहार और गुण आपको दूसरों से अलग और बेहतर बनाएगा।
  • ऐसे लोगों के बीच रहें जिनके लिए रूप-रंग और शारीरिक ख़ूबसूरती मायने नहीं रखती। वे सिर्फ़ आपके व्यवहार और गुणों की वजह से आपसे जुड़े हों।
  • वज़न अधिक है या बहुत कम है, तो इसमें सुधार के लिए व्यायाम करने या खान-पान सुधारने के साथ ही कुछ तैयारी रख सकते हैं। वो कपड़े पहनें जिनमें सहूलियत महसूस हो। किसी को देखकर उसकी तरह बनने की कोशिश में ग़लत कपड़ों का चुनाव न करें। जितना आराम महसूस करेंगे उतना ही आत्मविश्वास बना रहेगा।
  • कुछ चीज़ें बदली नहीं जा सकतीं जैसे कि लंबे क़द को छोटा और छोटे क़द को बड़ा नहीं किया जा सकता। उसी प्रकार यदि कोई समस्या आनुवंशिक है तो उसे भी बदला नहीं जा सकता। लिहाज़ा इन्हें अपनाएं और गुणों से ख़ुद को बेहतर बनाने की कोशिश करें।

आप जैसे हैं वैसे ही अपूर्ण रूप से परिपूर्ण हैं...

खामियों को नए दृष्टिकोण से देखें

कुछ भी कभी भी पूरी तरह से अच्छा या पूरी तरह से बुरा नहीं होता है। वास्तव में, सब कुछ सही और सामंजस्यपूर्ण संतुलन में होता है। उस एक चीज़ का फ़ायदा व सकारात्मक पहलू ढूंढें जिसे स्वीकार करने में आपको परेशानी होती है। अपनी सोच व धारणा को बदलें और मन को मनाएं कि यह इतना बुरा नहीं है।

हीनता के विचार को हावी न होने दें

अक्सर हम सामान्य से कुछ कम दिखने या प्राप्त होने की स्थिति में हीनता के विचार में डूब जाते हैं और दुखी हो जाते हैं। ऐसे में अपने ख़ुद के नकारात्मक विचारों का समर्थन न करें और सकारात्मक पहलू पर ध्यान देकर, स्थिति को जस का तस स्वीकार करें।

दूसरों के प्रति संवेदनशील रहें

यह भी ध्यान रखें कि ऐसे बहुत से लोग हैं जो आपके जैसी समस्या से जूझ चुके हैं। उन्होंने कैसे अपनी कमी को ताकत बनाया, उनसे प्रेरणा लें और जीवन में आगे बढ़ें। दूसरों से मदद व मार्गदर्शन लेने में बिलकुल भी हिचकिचाएं नहीं।

गुण सर्वोपरि होते हैं

अगर आप लगातार किसी नए हुनर को हासिल करने से ख़ुद को जोड़ रखते हैं, तो दिखने-दिखाने की तरफ़ आपका भी ध्यान नहीं जाएगा। हुनर की कद्र करने वालों और देह के पार मन को समझने वालों की सोहबत में रहें।

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