राजनांदगांव । जन मोर्चा के अध्यक्ष शिव वर्मा ने कहा कि संस्कारधानी नगरी व साहित्यिक धरा के रूप में दूर - दूर तक विख्यात राजनांदगांव शहर का नाम बदलने का प्रयास कतिपय कुछ लोगों के द्वारा किया जा रहा है जो बिल्कुल ही प्रयास ? उचित नहीं है । राजनांदगांव के दानवीर बैरागी राजाओं द्वारा अपने आराध्य भगवान श्री कृष्ण नंद लाला के नाम पर दिये गये नांदगाव ( नंदग्राम ) के गांव शब्द से चिढ़ रखने वाले इन तत्वों को जानना चाहिए । कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भारत की आत्मा गावों में बसती है कहा है । इसका यह मतलब नहीं की भारत की आत्मा शहरों में बसती है । यदि ऐसा होता तो आर्थिक रूप से अति सम्पन्न औद्योगिक क्षेत्र गुडगांव ( गुरूग्राम ) अस्तित्व में नहीं रहता । यहां के बैरागी राजाओं द्वारा दिये गये नाम को दिल्ली, भोपाल के लोग भी जानते है कि वही राजनांदगांव जहां के सांसद शिवेन्द्र बहादूर रहे, मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा, डॉ ० रमन सिंह जैसे नेता हुए है । पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी , गजानंन माधव मुक्तिबोध , बल्देव प्रसाद मिश्र जैसे साहित्यकार हुए है । नाचा के पुरोधा मंदराजी दाऊ के कलाकार तुलसी सम्मान से सम्मानित सुप्रसिद्ध हास्य कलाकार मदन निषाद व पद्मश्री गोविन्द निर्मलकर की जो कर्म भूमि रही है । लोक गायिका कविता वासनिक का मखमली सुर जहां से गुंजते हुए चहुं दिशी में फैली है । ऐसे प्रतिष्ठित एवं सर्वप्रिय नाम को बदलने का प्रयास करना यहां के बैरागी राजाओं की आत्माओं को ठेस पहुंचाने के बराबर है । राजनांदगांव प्रतिष्ठित नाम इसलिए कि इस जैसा नाम भारत भर में कहीं नहीं है । यहां के दानवीर राजा ने जब राजनांदगांव वासियों को रेल सुविधा के लिए रेल्वे को अपनी जमीन दी तो अंग्रेजों ने इस नांदगांव नाम के साथ स्टेट शब्द को जोड़ा तो नांदगांव में राज शब्द विभूषित हुआ तब से यह रियासत राजनांदगांव के रूप में जाना जा रहा है । ऐसे ऐतिहासिक व धार्मिक पृष्ठ भूमि वाले नाम को बदलकर दिग्विजय नगर किया जाना एक दिमागी फितुर ही कहा जा सकता है जो किसी भी दृष्टि से उचित व स्वीकार्य नहीं है । गौरतलब है कि राजनांदगांव शहर में कैलाश नगर, नेहरू नगर, इंदिरा नगर, राजीव नगर संजय नगर सेठी नगर, वैशाली नगर शिक्षक नगर, शिव नगर, आशा नगर जैसे दर्जनों नगर है । उसमें दिग्विजय नगर जैसा नाम इस नगरों की भीड़ में क्या नहीं खो जाएगा ? और दिग्विजय नगर ही क्यों राजा महंत बलरामदास, घांसीदास, सर्वेश्वरदास संगीतज्ञ राजा हिमांचलदास नगर क्यों नहीं ? राजनांदगांव रियासत के कम आयु वाले अंतिम राजा महंत दिग्विजयदास की अपने पूर्वजों के आगे बहुत कम उपलब्धि है जबकि राजा सर्वेश्वरदास, बलरामदास, घासीदास की दान वीरता जग जाहिर है जो राजनांदगांव शहर व जिले से लेकर राजधानी रायपुर तक इनकी दानवीरता की सुगंधि बिखरे बिखेर रहा है । राजा दिग्विजयदास के संदेहास्पद निधन के उपरांत ही दिग्विजय कॉलेज, दिग्विजय स्टेडियम, दिग्विजय क्लब अस्तित्व में आया। जिसमें राजनांदगांव का नाम रखने का प्रयास करने वाले रियासत काल की धरोहर लालबाग महल उजड़ गया इसे बचाने सामने नहीं आए। राजा बलरामदास काटन मील (बी.एन.सी. मील) बंद हो गया। इनके मुंह से एक शब्द भी नही निकली। राजा बलरामदास स्कूल (स्टेट स्कूल) को स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल में तब्दील किया जा रहा था तब उक्त अभियानकर्ता सामने नहीं आया। बैरागी समाज के लोगों ने विरोध किया तब ले दे कर बचा। इस ये पैसों की बल पर जगह-जगह दिग्विजय नगर समर्थन का आयोजन कर लोगों को बरगलाने का काम कर रहे है।
वर्मा ने आगे कहा कि कला साहित्य संगीत व खेल के क्षेत्र में दूर-दूर तक जाना जाने वाला संस्कारधानी नगरी राजनांदगांव में पं० बल्देव प्रसाद मिश्र, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, गजानन माधव मुक्तिबोध जैसे साहित्यिक मूर्धन्य व्यक्ति हुए है। जो दुनिया भर में विख्यात है। लेखन कर्म धर्म अध्यात्म सहित आधुनिक सोच से जुड़े इन साहित्य मनीषियों को राजनांदगांव नाम कभी भी नही खला। उन्हे कभी भी गवइहा होने का बोध नहीं हुआ जबकि बख्शी जी व मुक्तिबोध जी ने दिग्विजय कॉलेज में कई वर्षों तक अध्यापन कार्य किया है। यहां रह कर कालजयी रचनाएं लिखी है जिसे विश्व प्रसिद्धि मिली है। इन साहित्य मूर्धन्यों के अलावा दिल्ली की लाल किले से कवि सम्मेलन में गरजने वाले जनवादी कवि नंदूलाल चोटिया, रमेश याज्ञिक व साहित्यकार शरद कोठारी जी को राजनांदगांव का "गांव" शब्द कभी नही व्यापा। "गांव" शब्द ने उन्हें कभी गवईहा नही बनाया। शरद कोठारी जी चाहते तो अपने लोकप्रिय दैनिक सवेरा संकेत में राजनांदगांव नाम का विरोध कर शहरवासी कालम में अनवरत लेख लिख कर नाम बदलने का मुहिम चला देते. लेकिन राजनांदगांव के दानवीर राजाओं की धरा में रहकर चैन की सांस लेने वाले तथा इस धन्य धरा की गोद में रहकर यहां की अन्न जल ग्रहण करने वाले इन साहित्य मूर्धन्यों ने राजनांदगांव का नाम बदलने के लिए कभी नही सोंची। संस्कारधानी नगरी राजनांदगांव का नाम बदलने के लिए अभियान छेड़े इन तत्वों को यदि गांव से इतनी चिढ़ है व उन्हें अपने आप में गवइहा होने का बोध होता है तो राजनांदगांव से "गांव" शब्द हटाकर उड़ीसा के राजगांगपुर की तरह "पुर" शब्द जोड़ दे जिससे इस संस्कारधानी नगरी में पूर्णता (पुर) का बोध होगा व राजनांदपुर कहा जा सकेगा। बैरागी समाज अपने पूर्वज दानवीर राजाओं द्वारा अपने इष्ट देव के नाम पर दिये गये (नंदग्राम) नांदगांव नाम को बदलकर उनकी आत्माओं को ठेस नही पहुंचाना चाहता। इसी तरह शहरवासी भी किसी तरह नाम में छेड़छाड़ नही चाहते। अतः बेहतर होगा कि यहां के प्रजा हितैषी दानवीर राजाओं द्वारा अपने आराध्य के नाम पर दिये गये नाम नांदगांव को यथावत रहने दें। इसमें इनकी दानवीरता के बदौलत राज विशेषण की मिली उपलब्धि इस शहर के नाम में चार चांद लगाती है। जिस नाम से शहरवासियों को गौरव की अनुभूति होती है।

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