राजनांदगांव - योग वेदांत सेवा समिति राजनांदगांव द्वारा मोटेरा अहमदाबाद स्थित आशारामजी आश्रम को हटाकर ओलंपिक खेल मैदान व कॉम्प्लेक्स बनाने के आदेश के खिलाफ राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गुजरात के राज्यपाल एवं गुजरात के मुख्यमंत्री के नाम से सांसद, विधायक एवं कलेक्टर के नाम ज्ञापन सौंपा गया । यह केवल आश्रम को बचाने की बात नहीं, हमारे सनातन मूल्यों, संस्कृति, और राष्ट्र की आत्मा को बचाने की पुकार है । जहां समाजोत्थान के अनेकों सेवाकार्य संचालित हो रहे है ।ज्ञापन में मोटेरा-अहमदाबाद स्थित संत आशारामजी आश्रम, जो पिछले 53 वर्षों से सनातन संस्कृति, आत्मिक शांति और राष्ट्र सेवा का अद्वितीय केन्द्र रहा है, उस आश्रम को बचाने की माँग करते हुए हेतु ज्ञापन सौंपा गया । इस ज्ञापन सेवा में डोंगरगढ़ एवं डोंगरगांव समिति द्वारा अनुविभागीय अधिकारी को, मोहला व गंडई-खैरागढ़-छुईखदान समिति द्वारा जिला कलेक्टर को तथा छुरिया समिति द्वारा तहसीलदार को एक साथ ज्ञापन सौंपा गया ।इस संबंध में योग वेदांत सेवा समिति के अध्यक्ष रोहित चंद्राकर एवं संजय साहू ने बताया कि मोटेरा-अहमदाबाद स्थित संत आशारामजी आश्रम, यह आश्रम कोई मात्र इमारत नहीं, बल्कि सनातन संस्कृति की आत्मा, करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था, और मानव मूल्यों का जीवंत विश्वविद्यालय है । यह भूमि सनातनियों की श्रद्धा का केंद्र है — जहाँ व्यासपीठ, शिवजी का मंदिर, समाधि स्थल और संतों एवं भगवान की दिव्य मूर्तियाँ स्थित हैं । यह सेवा और मानवता का मंदिर है जहाँ रोज़ गरीबो में भंडारा, निःशुल्क आयुर्वेदिक परामर्श, जल प्याऊ, कंबल वितरण, बाल संस्कार, और राशन कार्ड जैसी सेवाएँ नि:स्वार्थ भाव से दी जाती हैं ।यह आश्रम नैतिकता की प्रयोगशाला है, जहाँ महिलाओं, युवाओं और बच्चों के लिए संस्कार शिविर, व्यसन मुक्ति अभियान, तुलसी पूजन और मातृ-पितृ पूजन जैसे आयोजन होते हैं । जहाँ वृक्षारोपण, औषधीय पौधों का संवर्धन और “बड़बादशाह” जैसे पर्यावरण प्रतीकों की परिक्रमा होती है । हमारा यह आश्रम गौसंवर्धन का केंद्र है, जहाँ गौशालाओं में गोरक्षा और गोपाष्टमी जैसे उत्सव मनाए जाते हैं एवं वैदिक परंपराओं का जीवित केंद्र है, जहाँ हवन, यज्ञ, त्रिकाल संध्या और वैदिक उत्सवों के माध्यम से ऋषियों की वाणी गूंजती है । यह शांति और ध्यान का स्थान है, जहाँ ध्यान योग, मौन मंदिर, मोक्षकुटीर और अनुष्ठानों के माध्यम से लाखों लोगों को मानसिक शांति मिली है ।यह स्थान कोई एक धर्म, संप्रदाय या संस्था की संपत्ति नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र की अमूल्य धरोहर है । फिर भी दुख की बात है कि ओलंपिक प्रोजेक्ट के नाम पर इस 10 एकड़ के आध्यात्मिक केंद्र को मिटाने की योजना बन रही है, जबकि यह स्थान 650 एकड़ के विशाल प्रोजेक्ट में एक नगण्य हिस्सा है । क्या कुछ दिनों के आयोजन के लिए 53 वर्षों की तपस्या से खड़ा हुआ ये सांस्कृतिक तीर्थस्थल मिटा दिया जाना न्यायोचित होगा ?हम पूछना चाहते हैं - क्या खेल की तरह आध्यात्मिकता, नैतिकता, और सामाजिक समरसता भी राष्ट्र निर्माण का आधार नहीं हैं ? यदि हिंदुस्तान में ही हिंदू आश्रम सुरक्षित नहीं रहेंगे, तो फिर कहाँ रहेंगे ? क्या बिना आश्रम तोड़े ओलंपिक आयोजन संभव नहीं ? यह केवल आश्रम को बचाने की बात नहीं, हमारे सनातन मूल्यों , संस्कृति, और राष्ट्र की आत्मा को बचाने की पुकार है।