कोरोना संक्रमण काल के बाद स्कूल खुले अभी कुछ दिन हुए हैं और सरकारी स्कूल के बच्चों की जेब पर बोझ डालना शुरू कर दिया गया है। कहीं 1000 तो कहीं 1200 सौ लाने को कहा जा रहा है। इसके लिए किसी स्कूल में छात्रों से शाला विकास समिति से लेकर खेलकूद की गतिविधियों का हवाला देकर पैसे लाने को कहा जा रहा है तो किसी स्कूल में स्काउट एक्टिविटी और साइंस के नाम पर फीस मांगी जा रही है। रेडक्रास फंड के लिए भी पैसे मांगे जा रहे हैं।
सरकारी स्कूल में इस तरह फीस वसूली को लेकर अब सवाल उठने लगे हैं। ऐसे बच्चे जिन्होंने फीस नहीं दी है, उन्हें रोज टोका जा रहा है। ऐसा केवल रायपुर में नहीं हो रहा है। राज्य के अन्य जिलों में भी बच्चों पर फीस के पैसे लाने के लिए दबाव डाला जा रहा है है। छात्रों ने बताया कि स्कूल में क्लास लगते ही हाजिरी के साथ ये पूछा जा रहा है कि किन किन छात्रों ने फीस अदा नही की है। रजिस्टर में भी अलग से टिक किया जा रहा है कि किसने पैसे दिए और किसने नहीं दिए।
छात्रों का कहना है कि टीचर रोज कहते हैं कि फीस के पैसे देने होंगे। ये फीस सभी के लिए अनिवार्य है, जबकि सरकारी स्कूलों में अधिकांश छात्र निम्न वर्ग से आते हैं। कोरोना के दौर में गरीब परिवारों को गंभीर आर्थिक संकट से जूझना पड़ रहा है। शिक्षा विभाग के रिटायर्ड अफसरों और शिक्षकों का मानना है कि सरकारी स्कूलों में फीस के लिए इस तरह से दबाव बनाना सही नहीं है। इससे छात्रों की पढ़ाई पर गलत असर पड़ेगा।
जैसे प्राइवेट स्कूल मांगते हैं उसी अंदाज में वसूली
कोरोना की वजह से महीनों सरकारी और प्राइवेट स्कूल बंद रहे, लेकिन इस दौरान कई निजी स्कूलों में फीस मांगने को लेकर विवाद सामने आते रहे हैं। निजी स्कूल प्रबंधन और पेरेंट्स के बीच तकरार भी हुई। कुछ महीने पहले इसकी शिकायत शिक्षा विभाग के अफसरों तक भी पहुंची। हाल के दिनों में कुछ इसी तर्ज पर सरकारी स्कूलों में भी छात्रों पर फीस के लिए दबाव बनाया जा रहा है।
यहां अंतर यह इतना है कि बच्चों को क्लास रूम में जाने से रोका नहीं जा रहा है। छात्रों को क्लास में एंट्री तो दी जा रही है, लेकिन पैसों के लिए रोज टोका जा रहा है। शिक्षाविदों का कहना है कि कोरोना काल में अनिश्चितता की स्थिति बनी है ऐसे में सरकारी स्कूलों में छात्रों से किसी तरह का फीस लेना सही नहीं है।