जिला अस्पताल के पैथालॉजी में 10 दिन से नहीं हो रही सीबीसी जांच, निजी लैब जा रहे मरीज
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  • अस्पताल में पहले से रखी मशीनें हुई खराब, नई मशीन अब तक नहीं हो पाई इंस्टॉल

तीन-तीन मशीनें रहते हुए जिला अस्पताल में 10 दिनों से सीबीसी (कम्प्लीट ब्लड काउंट) की जांच नहीं हो पा रही है। वजह ये कि एक बड़ी और छोटी को मिलाकर दो मशीनें खराब हो गई हैं, तीसरी बड़ी मशीन को हमर लैब के इंतजार में स्टोर से निकाला नहीं जा रहा है।

ऐसे में इस जांच की तीन-तीन मशीन रहते हुए लोगों को निजी पैथालॉजी सेंटरों का चक्कर काटना पड़ रहा है। जबकि वायरल का सीजन होने से हर तीसरे मरीज की यह जांच करानी पड़ रही है। जिला अस्पताल में इस जांच के लिए जीवनदीप समिति 60 रु. चार्ज लेती है। निजी पैथालॉजी में 250 रु. से 350 रु. तक लगते हैं। वहीं मरीजों की समस्याओं को लेकर अस्पताल प्रबंधन की ओर से कुछ भी नहीं किया जा रहा है। मरीज व उनके परिजन जांच कराने के लिए भटक रहे हैं। शहरी इलाके से आए लोग तो निजी लैब आसानी से जा रहे हैं पर ग्रामीणों को इसे लेकर खास दिक्कत हो रही है।

खून में मौजूद तत्वों की जानकारी सीबीसी से मिलती है
सीबीसी जांच में खून में मौजूद सभी तत्वों को पूरा ब्योरा रहता है। व्यक्ति के शरीर में कितना ग्राम खून, उसमें लाल व सफेद रक्त कणिकाओं की मात्रा जैसी सभी जानकारियां रहती हैं। पहले इन सभी के लिए अलग-अलग जांच कराना पड़ता था। पर अब एक ही जांच कराना पड़ता है। सीबीसी जांच से व्यक्ति की खून में प्लेटलेट्स की संख्या का पता चलता है। इस जांच से ही व्यक्ति को प्लेटलेट्स देने का निर्णय लिया जाता है। डेंगू या किसी अन्य वायरल में प्लेटलेट्स की संख्या लगातार कम होती जाती है। खासतौर पर डेंगू के मरीजों के लिए ये टेस्ट बेहद जरूरी है।

मशीन खराब, बैरंग लौट रहे जांच कराने आए मरीज
जिला अस्पताल में रोज पूरे जिले से रोज करीब 700 हो जाती है। इसके बाद भी जिम्मेदार सीबीसी मशीन को ठीक करने या नई मशीन संचालित करने का निर्णय नहीं ले रहे हैं। लोगों को बैरंग वापस या निजी सेंटर जाने पड़ रहे हैं। जांच को लेकर लापरवाही का आलम यह कि शुगर जांच की आधुनिक मशीन भी यहां खराब पड़ी है। मरीजों को तीन महीने की औसत रीडिंग का पता लगाने के लिए निजी पैथालॉजी जाना पड़ रहा है।

मेडीसिटी नाम की कंपनी को ठीक करने ठेका
हेल्थ विभाग में इंस्टॉल सभी मशीनों को ठीक करने के लिए राज्य से मेडीसिटी नामक कंपनी को ठेका दिया गया है। मशीनों को ठीक करना इस कंपनी के इंजीनियर का ही काम है। सूचना देने के बाद भी मशीनें ठीक नहीं हो पाईं हैं। जिससे मरीज परेशान हो रहे हैं।

सीबीसी से सिकलिंग में गंभीरता का अनुमान भी
सीबीसी से खून में मौजूद कणों की साइज का पता चलता है। सिकलिंग पीड़ितों के लिए ये टेस्ट बहुत जरुरी है। हैरानी वाली बात यह कि 10 बिस्तर की सुविधा वाले शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में लगी सीबीसी मशीनें ठीक हैं। लेकिन जिला अस्पताल का हाल खराब है।

इंजीनियर ठीक करके गए, फिर भी रिजल्ट ठीक नहीं
मशीनों को बनाने का ठेका लेने वाली कंपनी के इंजीनियर सीबीसी मशीन को ठीक करके गए थे। एक जांच के बाद उसका रिजल्ट गड़बड़ आने लगा तो हमने जांच करनी बंद कर दी। गुरुवार को मेंटेनेंस कराया जाएगा। -राकेश तिवारी, पैथालॉजी इंचार्ज।

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