दिल्ली २० अप्रैल 
दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में हनुमान जयंती के दिन निकाली जा रही शोभायात्रा पर पथराव, फायरिंग की घटना के बाद दिल्ली BJP अध्यक्ष आदेश गुप्ता ने इन इलाकों में रोहिंग्या और बांग्लादेशियों के होने की आशंका जताई। उन्होंने कहा कि ये गैर कानूनी काम में लिप्त हैं। इसके बाद सोशल मीडिया पर माहौल बनने लगा कि जहांगीरपुरी बांग्लादेशियों और रोहिंग्या के प्रवासियों का गढ़ है।
जहांगीरपुरी के सी ब्लॉक में घुसते ही लगता है कि नरक में आ गए हैं। कबाड़ का ढेर, कबाड़ मतलब हर तरह का कबाड़, पॉलिथिन, प्लास्टिक, कांच और गंदगी। हर तरफ कचरा और तीखी बदबू। गलियां इतनी संकरी कि दो लोग एक साथ ना निकल पाएं।
लोगों से बात करें तो बंगाली टोन साफ झलकता है, लगता है कि बंगाल ही आ गए। सी ब्लॉक मुस्लिम बहुल इलाका है, लेकिन यहां बीच-बीच में कई घर हिंदुओं के भी हैं। हिंदू भी बंगाल मूल के ही हैं। बस्ती के बाशिंदे बताते हैं कि उनकी जिंदगी में ये पहला मौका है जब हिंदू-मुस्लिम के नाम पर झगड़ा हुआ है।
जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती की शोभा यात्रा के दौरान हुआ पथराव, आगजनी और हिंसा के बाद जहांगीरपुरी का माहौल गरमाया हुआ है। हिंदू-मुसलमानों के बीच खाई बढ़ गई है।
कॉलोनी में रहने वाले दर्जनों लोगों से बात करने पर पता चलता है कि वो पश्चिम बंगाल के हल्दिया, मेदिनीपुर, मालदा, उत्तरी चौबीस परगना, हावड़ा जैसे जिलों से यहां आकर बसे हैं। लोगों की ये बसावट हाल फिलहाल की भी नहीं है। यहां जिनका घर है वो करीब 50 साल पहले से यहां रह रहे हैं।
                              ‘बाप-दादा बंगाल से काम करने के लिए दिल्ली आए, यहीं बस गए’
सीडी पार्क, जहांगीरपुरी के रहने वाले मोहम्मद सईद के माथे पर लकीरें खिंची हुई हैं। साउथ चौबीस परगना से मोहम्मद के बाप-दादा 1970 के दशक में काम की तलाश में दिल्ली आकर झुग्गी में रहने लगे।
मोहम्मद जहांगीरपुरी में रहने वाली तीसरी पीढ़ी के हैं। वो बताते हैं कि इंदिरा गांधी ने इंदिरा विकास कॉलोनी के साथ हमारी कॉलोनी भी बसाई थी। यहां ज्यादातर जो लोग रहते हैं वो कबाड़ी का काम करते हैं।
कुछ लोग कबाड़ इकट्ठा करते हैं, कुछ लोग उसे छंटाई करके आगे भेजने का काम करते हैं। यहां सिर्फ मुसलमान रहते हैं ये बहुत गलत बात कही जा रही है। यहां बहुत सारे हिंदू रहते हैं और हम सब साथ मिलकर ही रहते हैं।
‘अगर यहां कोई बांग्लादेशी है तो उसे गोली मार दो, हमें चैन से जीने दो’
MCD में सफाई कर्मचारी हसन अली अपने घर के बाहर चिंता में डूबे हुए हैं। उनके बेटे मोहम्मद अली को पुलिस गिरफ्तार करके ले गई है। वो कहते हैं कि 16 अप्रैल की शाम को मेरा बेटा दूध लेने के लिए निकला और पुलिस उसे पकड़ ले गई। अब उसे तिहाड़ भेज दिया गया है।
हमने हसन से कहा कि यहां के मुसलमानों को बांग्लादेशी और रोहिंग्या का बताया जा रहा है, क्या ये बात सही है? वो कहते हैं कि अगर यहां कोई बांग्लादेशी या रोहिंग्या है तो उसे गोली मार दो। मुसलमान होना गुनाह नहीं है। सरकार को जो छानबीन करना है करे।
50 साल की नूरजहां बेगम बताती हैं कि वो जब 3 साल की थीं, तब वो अपने परिवार के साथ पश्चिम बंगाल के हल्दिया से दिल्ली आ गईं। हमने उनसे पूछा कि वो किस सन में दिल्ली आईं? जवाब मिला, ‘मैं अनपढ़ हूं, साल-वाल का नहीं पता।’ नूरजहां शुरुआत में झुग्गी में रहीं फिर जहांगीरपुरी बस्ती में ठिकाना मिल गया। वो कहती हैं, ‘मेरे जो भी पड़ोसी हैं वो हल्दिया, खड़गपुर, मेदिनीपुर जिले से ही यहां आकर बसे। यहां के लोग कबाड़, मजदूरी, सफाई, ढुलाई ये सब काम करते हैं। यहां सब जैसे-तैसे पेट पाल रहे हैं।’
‘अमारा नाम मौलाना अमजद अली, आमी थाके कोलकाता ते…’
सफेद कुर्ता पैजामा पहने और टोपी लगाए शख्स अमजद ने कुछ इस तरह अपना परिचय दिया। वो सीडी पार्क में 1986 में आकर बसे। उनका घर मंदिर के ठीक पीछे ही है।
हमने उनसे पूछा कि क्या यहां बांग्लादेशी लोग रहते हैं? इस सवाल पर अमजद भड़क गए। बोले- मैं कितना भी छाती पीट-पीटकर बोलूं कि मैं भारतीय हूं, लेकिन लोग अपनी सोच नहीं बदलेंगे। आप भी यही सोच रहे होंगे कि मुसलमान बंगाली भाषा बोल रहा है तो वो बांग्लादेश से होगा।’
हावड़ावाले विजय मंडल ने अपनी बात से दिल जीत लिया
मेन रोड पर बाजार में चाय की दुकान लगाने वाले विजय मंडल करीब 30 साल के हैं और वो 1987 में दिल्ली आकर बसे। हमने विजय से पूछा कि आप मुस्लिम बहुल बस्ती में रह रहे हैं, क्या आपको मुसलमानों के बीच दिक्कत होती है? जवाब में विजय बोले, ‘मैं ईद के दिन नए कपड़े पहनकर जश्न मनाता हूं। मेरे पड़ोसी मुसलमान दिवाली पर दीये जलाते हैं। त्योहारों पर एक दूसरे के यहां मिठाई जाती है। हम बंगाली लोग अपने व्यंजन एक दूसरे के साथ बांटते रहते हैं।
दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी (DDA) के पूर्व कमिश्नर एके जैन ने बताया कि ‘दिल्ली को झुग्गी मुक्त करने के लिए 1975 में इंदिरा गांधी सरकार ने झुग्गी झोपड़ी में रहने वालों के लिए पुनर्वास योजना शुरू की थी। इसके तहत 40 कॉलोनियों को बसाया गया था और जहांगीरपुरी भी इसी में से एक कॉलोनी थी। दिल्ली में यमुना नदी के किनारे, रिंग रोड, सड़कों पर कई सारे लोग झुग्गियों में रहा करते थे।’
झुग्गीवालों को सस्ते में दिए गए थे 25 गज के प्लॉट
पूर्व कमिश्नर जैन बताते हैं कि ‘झुग्गी में रहने वाले लोगों के लिए 25 गज के प्लॉट बहुत सस्ती दरों पर दिए गए थे। 1970 के बाद से दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी ने ही इसकी प्लानिंग की थी। इन बस्तियों में करीब 80% आबादी UP और बिहार मूल की थी, वहीं करीब 20% आबादी पश्चिम बंगाल से थी। पश्चिम बंगाल से आने वाले लोग हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदायों से थे। कभी धार्मिक आधार पर कोई सर्वे नहीं हुआ कि किस समुदाय के कितने लोग रहते हैं। हालांकि, दलितों को प्लॉट आवंटन में आरक्षण दिया गया।’